नारी सशक्तिकरण पर निबंध- (Woman Empowerment Essay In Hindi)

नारी सशक्तिकरण पर निबंध- (Woman Empowerment Essay In Hindi)

 

 

1.प्रस्तावना :- इस सृष्टि के दोनों रूपों को निरंतर चलते रहने हेतु सृष्टा ने सभी जीवधारियों में नर और मादा बनाए और तदरूप शरीर गठन किया। दोनों के परस्पर सहयोग से ही जीवन की गाड़ी सरलता और सुगमता से चलती रहती है। दोनों ही गाड़ी के दो समान ऊंचाई के पहिए हैं – कोई काम अथवा ज्यादा नहीं। दोनों के ही कर्तव्य, अधिकार कार्य क्षेत्र सुनिश्चित है और वैसे ही स्वभाव प्रदान किए हैं सृष्टा ने। नारी कोमल, दयालु, संकोची, सेवाभावी है तो पुरुष, कठोर एवं अधिक परिश्रमी है।

 

2. समाज में नारी का स्थान:- भारतीय दर्शन, संस्कृति, परंपराओं में नारी को पुरुषों से ऊंचा स्थान दिया गया है। नारी देवी है, वह मान भी है, बहन भी है और पुत्री भी। पर स्त्री को माता कहा गया है। इतने उच्च स्थान पर भारतीय वांग्मय में नारी का बखान किया गया है जबकि पाश्चात्य देशों में मात्र ऐसे उपभोग की वस्तु अथवा सुविधा की साझेदारी माना गया है।

      प्राचीनकाल में नारी शिक्षित, विदुषी, कर्तव्य परायण होती थी। ज्ञान, विज्ञान, अध्ययन, लोकाचार किसी भी क्षेत्र में पुरुष से काम नहीं थी। गार्गी, आपला आदि तो वह प्रवीण थी। सावित्री जैसी भी थी जो साक्षात यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लाई थी। ऋषि आश्रम हो या राजमहल, कंगाल हो या धनवान, नई सर्वत्र ही पूजी थी।

 

 

3. नारी का महत्व:- मध्यकाल आते-आते नारी का स्थान पुरुषों की सर्वार्थ प्रताप काम लुलु पता, आदि के कारण न केवल गिर गया, बल्कि उसके अधिकारों पर कोठा रावघाट होने लगा, तथाकारी क्षेत्र सीमित हो गया और नारी को गंदे कपड़े की तरह बढ़ता जाने लगा। साहित्यकार भी नारी को दोष की खान के रूप में देखने लगे हैं। एक अंग्रेजी नाटककार ने तो यहां तक कहा है कि frailty ! The name is woman’ ( व्यभिचार, दुर्बलता ! तेरा नाम ही औरत है) विदेशियों की काम लोलुप निगाहों से बचने के लिए पर्दा प्रथा प्रारंभ हुई, नई घर की चार दीवारों में कैद हो गई तथा शिक्षा के प्रति भी नारी को नियुक्त सहित किया गया।

 

 

4. नारी जागरण वह नारी शिक्षा हेतु प्रयास :- आधुनिक काल आते-आते यहां नारी को पर की जूती समझा जाने लगा। अनेक अत्याचार उन पर होते थे वहां अब नारी जागरण, नारी का बिगुल बज उठा। स्वामी दयानंद के आर्य समाज ने नारी शिक्षा का मंत्र फूंका, राजा राममोहन राय ने सती प्रथा रूकवाई, महात्मा गांधी ने नारी उत्थान का नारा दिया, अनेक समाजसेवी व्यक्तियों ने पतित अबालाओं, और वेश्याओं का उद्धार किया। सरकार ने भी संविधान द्वारा नारी के शिक्षा प्राप्त करने, नौकरी करने, आदि के समान अधिकार और अवसर प्रदान किए हैं। महिला सुधार हेतु नारी निकेतन खोल दिए गए हैं। आज भी नई डॉक्टरी, इंजीनियरिंग, अध्यापन लिपि किया कार्य आदि क्षेत्रों में तो कम कर रही है। दहेज- प्रथम को समाप्त करने के लिए कानून पारित किया जा चुका है। किंतु समाज ने उसे अभी पूर्ण रूपेण नहीं अपनाया है, आता आए दिन बहू को जलाने तथा घर से निकल बाहर करने की घटनाएं देखने सुनने को मिलती रहती है।

 

 

5. उपसंहार :- यदि सरकारी बगैर सरकारी संस्थाओं एवं समाजसेवी व्यक्तियों द्वारा महिला उत्थान के लिए अनेक प्रयास किया जा रहा है और किए जाते रहेंगे तथापि जब तक समाज जागरूक नहीं होगा और नारियों के प्रति असित का दृष्टिकोण नहीं त्याग जाएगा, तब तक पर्याप्त सफलता नहीं मिलेगी । आज आवश्यक है पूर्व समाज अपने दृष्टिकोण को बदले, नारी को सच्चे हृदय से ऊपर उठकर समक्ष लाने का प्रयास करें और उनकी प्रगति में अर्चन डालने से बाज आए। साथ ही नारियों का भी दायित्व है कि वह अपने दंपति और पारिवारिक जीवन को स्वच्छ और सफल बनाते हुए अपने त्याग, लज्जा आदि देवी गुना को ना त्यागे, वर्णन सेवा भारती बनी रहे। बरसाती नदी जो अपने स्कूलों को जोड़ती फोड़ती गति से बहती है, उसकी भांति अमर यदि ना हो जाए। तभी वह अपने उच्च महत्वपूर्ण स्थान को पुनः प्राप्त कर सकेगी।

 

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