दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में 

दहेज प्रथा पर निबंध हिंदी में 

 

आज दहेज की प्रथा को देशभर में बुरा माना जाता है। इस कारण कई दुर्घटनाएं हो जाती है, कितने ही घर बर्बाद हो जाते हैं। आत्महत्या भी होती देखी गई है। नीति प्रति तेल डालकर बहू द्वारा अपने आप को आग लगाने की घटनाएं भी समाचार पत्रों में पढ़ी जाती है। पति एवं सास ससुर भी बहू को जला देते हैं या हत्या कर देते हैं। इसलिए दहेज प्रथा को आज कुर्ती माना जाने लगा है। भारतीय सामाजिक जीवन में अनेक अच्छे गुण है, परंतु कती पे बुरी ऋतियां भी उसमें धुंध की भांति लगी हुई है । इनमें एक रीति दहेज प्रथा की भी है।

विवाह के साथ ही पुत्री को दिए जाने वाले सामान को दहेज कहते हैं। इस दहेज में बर्तन, वस्त्र, पलंग, सोफा, रेडियो, मशीन, टेलीविजन आदि की बात ही क्या है, लाखों रुपया नगद भी दिया जाता है। इस दहेज को पुत्री के स्वस्थ शरीर, सौंदर्य और सुशीला के साथ ही जीवन को सुविधा देने वाला माना जाता है।

दहेज प्रथा का इतिहास देखा जाए तो तब इसका प्रारंभ किसी बुरे उद्देश्य से नहीं हुआ था। दहेज प्रथा का उल्लेख मनु स्मृति में ही प्राप्त हो जाता है, जबकि वस्त्र भूषण युक्त कन्या के विवाह की चर्चा की गई। गाय तथा अन्य वाहन आदि देने का उल्लेख मनुस्मृति में दिया गया है। समाज में जीवाणु उपयोगी सामग्री देने का वर्णन भी मनुस्मृति में किया गया है।

परंतु कन्या को दहेज देने के दो प्रमुख कारण थे। पहले तो यह की माता-पिता अपनी कन्या को दान देते समय यह सोचते थे कि वस्त्र दी सहित कन्या को बहुत कुछ सामान दे देने से उसका जीवन सुविधा पूर्वक चलता रहेगा और कन्या को प्रारंभिक जीवन में कोई कष्ट ना होगा। दूसरा कारण यह था कि कन्या भी घर में अपने भाइयों के समान भागीदारी है, चाहे वह अचल संपत्ति नहीं लेती थी।

परंतु विवाह के काल में उसे यथाशक्ति धन, पदार्थ आदि दिया जाता था, ताकि वह सुविधा से जीवन व्यतीत करें और उसके पश्चात भी उसे जीवन भर सामान मिलता रहता था। घर-घर में उसका सम्मान हमेशा बना रहता था। पुत्री जब भी पिता के घर आई थी, उसे अवश्य ही धन वस्त्र आदि दिया जाता था। इस प्रथा के दुष्परिणामों से भारत के मध्ययुगीन इतिहास में अन्य घटनाएं भारी-बड़ी है।

धानी और निर्धन व्यक्तियों को दहेज देने और न देने की स्थिति में दोनों कष्ट सहने पड़ते हैं। समय के चक्र में इस सामाजिक उपयोगिता की प्रथा एन धीरे-धीरे अपना बड़ा रूप धारण करना आरंभ कर दिया और लोगों ने अपनी कन्याओं का विवाह करने के लिए भरपूर धन देने की प्रथम चला दी। इस प्रथा को खराब करने का आरंभ धनी वर्ग से ही हुआ है, क्योंकि धनिया को धन की चिंता नहीं होती। वे अपनी लड़कियों के लिए लड़का खरीदने की शक्ति रखते हैं। इसलिए दहेज प्रथा ने जघन्य बड़ा रूप धारण कर लिया और समाज में यह कुरीतियां सी बन गई है।

अब इसका निवारण दुष्कर हो रहा है। नौकरी पैसा या निर्धन को इसी पर था से अधिक कष्ट पहुंचता है। अब तो बड़वा लड़के को बैंक का एक चेक मान लिया जाता है कि जब लड़की वाले आए तो उनकी खाल खींचकर पैसा इकट्ठा कर लिया जाए ताकि लड़की का विवाह कर देने के साथ ही उसका पिता बेचारा कर्ज से ही दब जाए।

दहेज प्रथा को सर्वथा बंद किया जाना चाहिए। कानून बनाकर इसे रोकना चाहिए। अब तो पुत्री और पुत्र का पिता की संपत्ति के समान भाग स्वीकार किया गया है। इसलिए भी दहेज को कानूनी रूप दिया जाना चाहिए और लड़के को माता-पिता द्वारा मनमानी धन दहेज़ में लेने का प्रतिबंध लग जानी चाहिए। जो लोग दहेज में मनमानी कर उन्हें दंड देकर इस दिशा में सुधार करना चाहिए। दहेज प्रथा को भारतीय समाज के माथे कलंक के रूप में नहीं रहने देना चाहिए।

 

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